Regular Bail व Anticipatory Bail: पूरी जानकारी
Bail kya hai – किसी आरोपी (accused) व्यक्ति को, जिसे पुलिस ने गिरफ्तार किया है या जो जेल में बंद है, उसे कुछ शर्तों पर अस्थायी आज़ादी (temporary release) देना।
Bail देने के बाद आरोपी को अदालत (court) या पुलिस की शर्तों का पालन करना होता है, जैसे –
ज़रूरत पड़ने पर कोर्ट/पुलिस के सामने हाज़िर होना। गवाहों या सबूतों से छेड़छाड़ न करना। अपराध नहीं दोहराना। अगर आरोपी इन शर्तों का पालन नहीं करता, तो Bail Cancel हो सकती है।
Bail क्यों दी जाती है?
भारतीय कानून में यह मान्यता है कि –जब तक अपराध साबित न हो,
आरोपी निर्दोष है। इसलिए आरोपी को मुक़दमा (trial) पूरा होने तक हमेशा जेल में रखना ठीक नहीं माना जाता।

Bail के प्रकार
1. Regular Bail – गिरफ्तारी के बाद अदालत से मिलने वाली सामान्य जमानत।
2. Anticipatory Bail – गिरफ्तारी से पहले मिलने वाली अग्रिम जमानत (BNSS धारा 438)।
3. Interim Bail – अस्थायी या थोड़े समय के लिए दी गई जमानत।
Regular Bail
Regular Bail वो जमानत है जो किसी व्यक्ति को गिरफ्तार होने के बाद अदालत (Court) से मिलती है।
मतलब – जब पुलिस किसी आरोपी को पकड़कर जेल भेज देती है, तो आरोपी कोर्ट से “Regular Bail” के लिए आवेदन करता है।
कानूनी आधार (Legal Provision) पहले ये CrPC की धारा 437 और 439 में था। अब नए कानून (BNSS, 2023) में भी यही प्रावधान है।
धारा 437 BNSS → Magistrate के पास Regular Bail
धारा 439 BNSS → Sessions Court / High Court के पास Regular Bail

Regular Bail कब मिलती है?
1. अपराध bailable है या non-bailable।
कोर्ट यह देखकर Bail देती है कि
2. आरोपी गवाहों पर दबाव न डाले।
3. आरोपी सबूतों से छेड़छाड़ न करे।
4. आरोपी का criminal history कैसा है।
5. आरोपी भागने की कोशिश न करे।
Regular Bail लेने की प्रक्रिया (Step by Step)
1. वकील (Advocate) के माध्यम से Bail Application तैयार करें।
2. Application में ये जानकारी होती है –आरोपी का नाम, पता,FIR नंबर / केस नंबर,धारा (sections) जिनमें केस दर्ज है Bail देने के कारण (grounds)
3. Application कोर्ट (Magistrate / Sessions Court) में दायर होती है।
4. पुलिस/अभियोजन पक्ष (Prosecution) अपना जवाब देता है।
5. सुनवाई के बाद कोर्ट जमानत मंज़ूर या खारिज करती है।
Regular Bail मिलने पर शर्तें (Conditions)आरोपी कोर्ट की अनुमति के बिना शहर/जगह नहीं छोड़ेगा। गवाहों से संपर्क या दबाव नहीं डालेगा। समय पर कोर्ट में उपस्थित होगा। अगर ज़रूरी हुआ तो जमानतदार (surety) और बॉन्ड देना पड़ेगा।
Anticipatory Bail
anticipatory Bail का मतलब है – अगर किसी व्यक्ति को लगता है कि उसके खिलाफ FIR दर्ज हो सकती है या उसे गिरफ्तार किया जा सकता है, तो वह पहले से ही कोर्ट से अग्रिम जमानत ले सकता है। इसे अंग्रेज़ी में कहते हैं – “Bail in anticipation of arrest” आसान भाषा में गिरफ्तारी से पहले की जमानत।
कानूनी आधार (Legal Provision)
पहले ये CrPC की धारा 438 में था। अब नए कानून (BNSS, 2023) में भी धारा 438 के तहत ही है। केवल Sessions Court और High Court ही Anticipatory Bail दे सकते हैं।
कब मिलती है Anticipatory Bail?
कोर्ट ये देखकर अग्रिम जमानत देती है:
1. केस झूठा या राजनीतिक/व्यक्तिगत दुश्मनी से प्रेरित तो नहीं।
2. आरोपी का criminal record कैसा है।
3. अपराध कितना गंभीर है (serious offence या नहीं)।
4. आरोपी भागने की कोशिश न करे।
5. आरोपी सबूत और गवाहों से छेड़छाड़ न करे।

प्रक्रिया (Process of Anticipatory Bail)
1. वकील के माध्यम से Anticipatory Bail Application Sessions Court / High Court में दायर की जाती है।
2. Application में यह लिखा जाता है कि –आरोपी बेगुनाह है ।उसे फंसाए जाने का डर है। गिरफ्तारी से उसकी प्रतिष्ठा/जीवन पर असर पड़ेगा।
3. कोर्ट अभियोजन (Prosecution) से जवाब मांगेगा।
4. सुनवाई के बाद कोर्ट Bail मंज़ूर या खारिज करेगा।
शर्तें (Conditions of Anticipatory Bail)
अगर कोर्ट Anticipatory Bail देता है, तो आरोपी को इन शर्तों का पालन करना होगा:ज़रूरत पड़ने पर पुलिस को जांच में सहयोग करना होगा।गवाहों/सबूतों से छेड़छाड़ नहीं करेगा।बिना अनुमति के देश छोड़कर नहीं जाएगा।
Interim Bail?
Interim Bail का मतलब है – अदालत द्वारा आरोपी को थोड़े समय के लिए अस्थायी जमानत देना।
इसे Temporary Bail भी कहते हैं।
आमतौर पर यह तब दी जाती है जब Regular Bail या Anticipatory Bail का फैसला होने में समय लग रहा हो।
कानूनी आधार (Legal Provision)
Interim Bail का जिक्र सीधे कानून (CrPC या BNSS) में नहीं है, लेकिन Supreme Court और High Court के Judgments में इसे मान्यता मिली है।यह न्यायालय की विवेकाधिकार शक्ति (discretionary power) पर आधारित है।
Interim Bail कब मिलती है?
1. जब Regular Bail Application pending हो और सुनवाई में समय लगे।
2. जब Anticipatory Bail Application pending हो और कोर्ट को तुरंत फैसला न करना हो।
3. जब किसी आरोपी को विशेष परिस्थिति (illness, family emergency) में थोड़े समय के लिए राहत चाहिए।
Interim Bail की अवधि
यह सीमित समय (limited period) के लिए दी जाती है। अगर Regular Bail Application allow हो जाता है → Interim Bail automatically Regular Bail में convert हो जाती है।अगर Application reject हो जाता है → Interim Bail खत्म हो जाएगी और आरोपी को surrender करना होगा।

प्रक्रिया (Process of Interim Bail)
1. वकील Interim Bail Application दाखिल करता है।
2. इसमें यह लिखा जाता है कि –Final Bail Application pending है।Immediate relief चाहिए (health, family reason या unnecessary harassment से बचने के लिए)।
3. कोर्ट limited time के लिए Interim Bail grant कर सकता है।
बेल (Bail) की प्रक्रिया FIR के बाद होती है।.FIR क्या है” → “FIR के बारे में पूरी जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें”https://legal40.in/fir-kya-hai/
Pingback: Digital Arrest Kya Hai? Puri Jankari Hindi Mein